Wednesday 28 June 2023

देश बदलना है तो गाँव को बदलना होगा


               देश बदलना है तो गाँव को बदलना होगा



                                           अन्ना हज़ारे.


हम हमेशा कहते हैं कि लोकपाल कानून बनने से ही भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। इससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगेगा। महात्मा गांधी कहते थे कि देश बदलने के लिए आपको गांव बदलना होगा। जब तक गांव नहीं बदलेगा तब तक देश नहीं बदलेगा। गांव को बदलने के लिए गांव के आदमी को बदलना पड़ेगा। गांव के लोगों को बदलना पड़ेगा। लेकिन बहुत-से लोगों को लगता है कि गांव को बदलने का मतलब है आदर्श गांव बनाना यानी पंचायत की बिल्डिंग बनाना, घरों की ऊंची-सी बिल्डिंग बनाना, रास्ते पक्के बनाना। लोग सोचते हैं कि इतना हो गया तो आदर्श गांव बन गया। आदर्श गांव की यह संकल्पना नहीं है। यह भी करना है लेकिन ऊंची-ऊंची बिल्डिंग खड़ी करना आदर्श गांव की संकल्पना नहीं है। जरूरत है तो यह भी करना है लेकिन इतने से ही आदर्श गांव बन जाएगा, ऐसा नहीं है। 


हर आदमी जब यह सोचेगा कि अपने पड़ोसी, गांव, समाज, देश के लिए भी कुछ कर्तव्य है। जब ऐसी भावना का निर्माण गांव में होगा तभी आदर्श गांव बनेगा। जब तक लोगों के दिल में सामाजिकता नहीं आएगी तब तक ये रास्ते, जमीन और बिल्डिंग सिर्फ प्रदर्शन के लिए होंगे। बिल्डिंग बनाना भी जरूरी है लेकिन जब बिल्डिंग की ऊंचाई ऊपर हो जाती है तो इंसान की विचारधारा को भी उस लेवल पर लाना जरूरी है। आज बिल्डिंग की ऊंचाई तो बढ़ रही है पर इंसान का कद घट रहा है। 



ये सही डेवलपमेंट नहीं है। यह समझ कर गांव को आदर्श बनाने का काम हमें करना होगा। ऐसा गांव सिर्फ पैसे से नहीं बनेगा। अगर पैसे से गांव बनते तो टाटा-बिरला ने कितने गांव बना दिए होते। ऐसे गांव के लिए लीडरशिप चाहिए। लीडरशिप के बिना ऐसे गांव नहीं बनेंगे। गांव में लोग लीडर की तरफ देखते हैं। सुबह से शाम तक आप क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? कहां रहते हैं? कैसे चलते हैं? कहां घूमते हैं? लोगों का ध्यान लगातार लीडर के आचरण की तरफ बना रहता है। आपको किसी ने गुटके की पुडिय़ा मुंह में डालते देखा तो आपके शब्दों का वजन खत्म। जरा भी किसी ने देखा कि बीच की उंगली में सिगरेट है और धुआं निकालते समय ऐसे राउंड में निकाल रहा है तो आपके शब्दों का वजन खत्म। बहुत संभलना पड़ेगा। मैं आपको भाषण नहीं दे रहा, कोई उपदेश नहीं दे रहा हूं। मैं जो कर रहा हूं, वह आपको बता रहा हूं। 



हमारे गांव में चाय की दुकान है। 35 साल में मुझे चाय की दुकान में बैठा हुआ किसी ने नहीं देखा होगा। इतना संभलना पड़ता है कार्यकर्ता को। मेरे कहने का मतलब यह है कि कृति और शब्द दोनों को जोडऩे वाली लीडरशिप जबतक नहीं खड़ी होगी तक तक असर नहीं आएगा। सिर्फ शब्दों से असर नहीं पड़ेगा। आज़ादी के 64 साल में कहने वाले लोगों की संख्या कम नहीं रही है। कितने अच्छे-अच्छे भाषण दिए गए लेकिन शब्दों के साथ कृति न होने से उसका असर नहीं आएगा. इसलिए कबीरदास जी कहते हैं, ‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय, कथनी छोड़ करनी करे, तो विष का अमृत होय।’ कथनी छोड़कर हमें करनी की तरफ बढऩा है। आदर्श गांव तब बनेगा। 



फिर वे पांच बातें आती है शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग और अपमान सहने की क्षमता। ये सारी बातें जब जीवन में आ जाएंगी तब काम करना आसान होगा। कोई काम असंभव नहीं है। आज अन्ना हजारे आपको दिखाई दे रहा है। एक दिन मैं भी आपके जैसा सामान्य कार्यकर्ता था। मैं पैदल घूमता था, इस दफ्तर से उस दफ्तर। कभी बीडीओ दफ्तर में सिपाही बोलता कि बीडीओ अभी बैठक में हैं तो घंटा-घंटा बैठता था। मेरे कहने का मतलब है कि सामान्य कार्यकर्ता भी असामान्य कार्य कर सकता है। असंभव नहीं है। इन बातों के लिए सोचना है. 



एक मिसाल देता हूं। मेरे गांव में दलित लोगों को मंदिर में आने नहीं दिया जाता था। दलित लोगों के पीने के पानी का कुआं अलग था। सामूहिक भोज में उन्हें दूर बिठाया जाता था। गांव के दलित परिवारों पर 60 हजार रुपए बैंक का कर्जा हो गया पूरा नहीं हो रहा था। पूरे गांव के लोग बैठ गए। गांववालों ने सुझाव दिया। इसके बाद पूरे गांववाले श्रमदान करने के लिए दलितों की जमीन पर गए। सबने श्रमदान करके दलितों के खेतों में दो साल फसल उगाई और दलितों का कर्जा पूरा किया। ये है बदलाव। जिस तरह के आदर्श गांव की परिकल्पना गांधीजी करते थे, वह यह है। छुआछूत न हो, जात-पात का भेद न हो। मानव एक धर्म है। जब तक पड़ोसी के सुख-दुख में हम सहभागी नहीं होंगे तब तक बाकी सब बेकार है। खुद को कार्यकर्ता मानने वालों को इन बातों को सोचना है। 



कई कार्यकर्ता बोलते हैं, मैं तो कोशिश करता हूं पर लोग मेरी मानते ही नहीं, लोग सुनते नहीं। लोगों को दोष मत दो। लोग सुन नहीं रहे तो इसका मतलब उन पर आपके शब्दों का असर नहीं हो रहा है। असर क्यों नहीं हो रहा है? क्योंकि आपमें कोई न कोई कमी है। इसका इलाज है कि अंतर्मुखी हो जाओ। लोगों को दोष नहीं देना। सोचो कि मेरा असर क्यों नहीं हो रहा? अंतर्मुखी होकर सोचना और अपने में जो कमियां हैं उसको सुधारने का प्रयास करो। मेरे अंदर कुछ तो कमी है? चरित्र में कमी है, आचार-विचार में कुछ कमी है इसलिए लोग मेरी नहीं सुन रहे। एक दिन वह आएगा। समय लगेगा। झटपट नहीं होगा। कोई भी आप काम करते हो उसे झटपट होने की अपेक्षा नहीं करो। अगर झटपट की अपेक्षा करोगे तो कभी कभी झटपट काम हो भी जाएगा लेकिन वह स्थायी नहीं होगा। लंबे समय में जितना परिवर्तन में लाएंगे, उतना वह स्थायी रहेगा। यह सब बातों के लिए कार्यकर्ता को सोचना है।

सरकारी लोकपाल बिल जन विरोधी है

सरकारी लोकपाल बिल जन विरोधी है


·         ये क़ानून जन विरोधी  है। इस क़ानून का मकसद केवल लोकपाल नामक संस्था बनाकरजो कि सरकारी शिकंजे में रहेगीइस देश के लोगों का दमन करना है। इस क़ानून का हम पुरज़ोर विरोध करते हैं और मांग करते हैं कि ये क़ानून वापिस लिया जाए और खारिज किया जाए।

·         इस क़ानून के दायरे में इस देश के सारे मंदिरमिस्ज़दगुरूद्वारेचर्चमहिला मंडल,धार्मिक संस्थारामलीला कमेटीदुर्गा पूजामदरसेक्रिकेट क्लबस्पोर्ट क्लबयुवा क्लबमजदूर किसान संगठनआंदोलनप्रेस क्लबसारे अस्पतालसारी डिस्पेंसरी,आर.डब्ल्यू.ए क्लबरोटरी क्लबलाइंस क्लब इत्यादि आएंगे। इन सभी संस्थाओं में काम करने वाले सभी पंडितमौलवीपफादरसिस्टरबिशपग्रंथीअध्यापकडॉक्टर इत्यादि को सरकारी अफसर घोषित किया गया है। इसके दायरे में केवल 10 प्रतिशत नेता और प्रतिशत सरकारी अधिकारी आएंगे। 90 प्रतिशत नेता, 95 प्रतिशत अधिकारीसभी कंपनियां और सभी राजनैतिक पार्टियां इसके दायरे के बाहर होंगी।

·         पिछले महीने से सरकार और कांग्रेस प्रवक्ताऔपचारिक और अनौपचारिक तरीके से टीम अन्ना और इस देश के लोगों द्वारा ड्राफ्रट किए जन लोकपाल पर जो-जो आरोप लगा रहे हैंवो आरोप जनलोकपाल पर तो सरासर झूठे थेलेकिन सरकारी लोकपाल पर ये सारे आरोप सच साबित होते हैं। मसलन ये बिल जन विरोधी है,भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला हैअव्यवहारिक हैख़तरनाक है इत्यादि।

·         लोकपाल पूरी तरह से सरकार के हाथ की कठपुतली होगाजिसको इस्तेमाल करके सरकार सभी संस्थानों पर शिकंजा कस सकती है।
लोकपाल का चयन पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में होगा। पांच सदस्यीय चयन समिति में तीन सरकार के अपने होंगे (चयन समिति में प्रधनमंत्रीनेता विपक्ष,स्पीकरचीफ जस्टिस और सरकार द्वारा चयनित एक वकील)। खोज समिति और चयन प्रक्रिया के बारे में बिल पूरी तरह से शांत है। लोकपाल के सदस्यों को हटाना भी सरकार के नियंत्रण में होगा। सरकार अथवा 100 सांसदो की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा और जांच के दौरान सरकार उस सदस्य को निलंबित कर सकती है। लोकपाल के वरिष्ठ अधिकारीयों का चयन सरकार द्वारा बताए गए नामों में से होगा।

·         ये क़ानून आने के बाद सीबीआई पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाएगी। आज सीबीआई पूछताछजांचअभियोजन खुद करती है। अब सीबीआई से पूछताछ और अभियोजन को छीना जा रहा हैतो सीबीआई के टुकड़े-टुकड़े करके  निष्क्रिय बनाया जा रहा है। सीबीआई निदेशक का चयन राजनैतिक नियंत्रण में कर दिया गया है। अब इसका चयन प्रधनमंत्रीनेता विपक्ष और चीफ जस्टिस करेंगे। जाहिर है प्रधनमंत्री और नेता विपक्ष कमज़ोर निदेशक की ही सिफारिश करेंगे। सख्त निदेशक आ गया तो उन्हीं के खिलाफ जांच शुरू कर देगा। सीबीआई पर लोकपाल का निरीक्षण का अधिकार होगा- ऐसा बताया जा रहा है। यह बिल्कुल भ्रामक है और पूरे देश के साथ धोखा किया जा रहा है। लोकपाल का सीबीआई के ऊपर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होगा। सीबीआई पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में रहेगी। लोकपाल केवल पोस्टमेन की तरह सीबीआई को शिकायत भेजने का काम करेगा।

·         ग्रुप `सी´ और `डी´ कर्मचारी पूरी तरह से लोकपाल के दायरे के बाहर हैं। ग्रुप `सी´ और`डी´ कर्मचारियों के मामले में लोकपाल केवल पोस्ट ऑफिस की तरह सारी शिकायतें सीवीसी को भेजेगा। सीवीसी पर लोकपाल का किसी भी तरह से नियंत्रण नहीं होगा। नियंत्रण के नाम पर सीवीसी लोकपाल को केवल त्रौमासिक रिपोर्ट भेजेगा। सीवीसी के232 कर्मचारी 57 लाख ग्रुप `सी और डी´ के भ्रष्टाचार की तहकीकात कैसे करेंगेयह एक बहुत बड़ा प्रश्न हैइस बिल की एक बड़ी विडंबना यह है कि ग्रुप `सी´ और `डी´के मामलों की जांच भी सीबीआई करेगी और अपनी रिपोर्ट सीवीसी को भेजेगी। लेकिन जांच का अभियोजन डालने की ताकत सीबीआई को नहीं होगी। ग्रुप `सी´ और `डी´ के अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन कौन करेगा इस पर बिल मौन है।

·         आज़ादी के बाद पहली बार भ्रष्टाचार के मुकदमें में भ्रष्टाचारी अफसरों और नेताओं को मुफ्त में वकील सरकार मुहैया कराएगी और उन्हें हर तरह की क़ानूनी सलाह देगी।

·         शिकायतकर्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए आरोपी अधिकारी और नेता को सरकार मुफ्त में वकील मुहैया कराएगी। भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ तो शिकायत होने के बाद जांच होगी और शिकायत के लगभग दो साल बाद मुकदमा होगालेकिन शिकायतकर्ता के खिलाफ मुकदमा शिकायत करने के अगले दिन ही जारी हो जाएगा। 

·         भ्रष्ट अधिकारियों को निकालने की ताकत लोकपाल को नहीं बल्कि उसी विभाग के मंत्री को होगी। आज तक जो मंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच के आदेश नहीं देते थे,क्योंकि अधिकतर मामलों में वो भी मिले होते थेक्या वो भ्रष्ट अधिकारियों को नौकरी से निकालेंगे

·         अगर लोकपाल के कर्मचारी भ्रष्ट हो गए तो क्या होगासरकारी बिल कहता है कि लोकपाल खुद ऐसे मामलों का जांच करेगा। प्रश्न उठता है कि क्या लोकपाल खुद अपने ही कर्मचारियों के खिलाफ एक्शन लेगाजन लोकपाल में सुझाव दिया गया था कि लोकपाल के कर्मचारियों की शिकायत के लिए एक स्वतंत्र शिकायत प्राधिकरण बनाया जाए। सरकार ने इस नामंजूर कर दिया है।

·         हमने यह भी कहा था कि लोकपाल की कार्यप्रणाली पूरी तरह पारदर्शी हो। इसके लिए हमने कहा था कि हर मामले की जांच पूरी होने के बाद उससे संबंधित सभी रिकॉर्ड वेबसाइट पर डालें जाएं। सरकार ने यह मांग भी ठुकरा दी है। इससे साफ ज़ाहिर है कि सरकारी लोकपाल पूरी तरह भ्रष्टाचार का अड्डा बन जाएगा।

·         भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को संरक्षण देने की बात इस बिल में कहीं नहीं की गई है।

·         कार्पोरेट करप्शन पर जन लोकपाल में ढेरों सुझाव दिए गए थे। उन सबको नामंजूर कर दिया गया है। मसलन-
1. 
हमने मांग की थी कि यदि कोई कंपनी नियम-क़ानून के खिलाफ जाकर सरकार से कोई फ़ायदा लेती है तो उसे भ्रष्टाचार घोषित किया जाए। सरकार ने यह बात नहीं मानी है।
2. 
भ्रष्टाचार के आरोपी पाई जाने वाली कंपनी से जुर्माने के रूप में उस रकम का पांच गुना वसूला जाएजितना उसने सरकार को नुकसान पहुंचायायह बात भी नहीं मानी गई है।
3. 
भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गई कंपनी और उसके प्रमोटर्स द्वारा बनाई गई अन्य कंपनियों को भी भविष्य में कोई सरकारी ठेका लेने से ब्लैकलिस्ट किया जाए। यह बात भी सरकार ने नहीं मानी।

·         किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में स्वयं संज्ञान लेने का अधिकार लोकपाल को नहीं होगा। 

·         एक अध्ययन के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामलों को निपटाने में हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट में 25 साल लगते हैं। हमने मांग की थी कि हाईकोर्ट में स्पेशल बैंच बनाए जाए ताकि छ: महीनों में अपीलों का निपटारा हो सके। सरकार ने यह बात भी नहीं मानी।

·         सीआरपीसी में पेचीदगी की वजह से ट्रायल व अपील में काफी वक्त लग जाता है हमने इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन सुझाया था जिसे सरकार ने नहीं माना है।

·         केंद्र में तो लोकपाल सीबीआई से जांच करा लेगालेकिन राज्यों में लोकायुक्त किससे जांच कराएगाइस बारे में बिल खामोश है। अत: लोकायुक्त को जांच का काम राज्य की पुलिस से ही करवाना पडे़गा।
Jai Hind Jain Bharat.


Tuesday 27 June 2023

ग्रामीण_विकास_के_विविध_कार्यक्रम_एवं_उनका_मूल्यांकन

बिहार में ग्रामीण विकास के विविध कार्यक्रम एवं उनका मूल्यांकन.

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राज्य द्वारा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में लागू किये गये कार्यक्रमों को मोटे तौर पर चार भागों में बाँटा जा सकता है:
(अ) आय बढ़ाने वाले कार्यक्रम
(ब) रोजगार उन्मुख कार्यक्रम
(स) शिक्षा एवं कल्याण कार्यक्रम
(द) क्षेत्रीय कार्यक्रम।

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पष्चात् विविध पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत अनेकानेक ग्रामीण विकास कार्यक्रम चलाये गये, जिनमें से कुछ मुख्य कार्यक्रमों को मैने  संख्या 1 के आधार पर अवलोकित किया जा सकता है:

ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं उनका श्रेणीगत विभाजन
कार्यक्रम लागू वर्ष

प्रथम पंचवर्षीय योजना
1. सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952
2. राष्ट्रीय विस्तार सेवा 1953

द्वितीय पंचवर्षीय योजना
3. खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग 1957
4. बहुद्देशीय जनजातीय विकास प्रखण्ड 1959
5. पंचायती राज संस्था 1959
6. पैकेज कार्यक्रम 1960
7. गहन कृषि विकास कार्यक्रम 1960
तृतीय पंचवर्षीय योजना
8. व्यावहारिक पोशाहार कार्यक्रम 1960
9. गहन चौपाया पशु विकास कार्यक्रम 1964
10. गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम 1964
11. उन्नत बीज किस्म योजना 1966
12. राष्ट्रीय प्रदर्शन कार्यक्रम 1966
वार्षिक योजना
13. कृशक प्रषिक्षण एवं षिक्षा कार्यक्रम 1966
14. कुँआ निर्माण योजना 1966
15. वाणिज्यिक अनाज विषेश कार्यक्रम 1966
16. ग्रामीण कार्य योजना 1967
17. अनेक फसल योजना 1967
18. जनजातीय विकास कार्यक्रम 1968
19. ग्रामीण जनषक्ति कार्यक्रम 1969
20. महिला एवं विद्यालय पूर्व षिषु हेतु समन्वित योजना 1969
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना
21.ग्रामीण ग्रामीण_विकास_के_विविध_कार्यक्रम_एवं_उनका_मूल्यांक हेतु कै्रष कार्यक्रम 1971
22. लघु कृशक विकास एजेन्सी 1971
23. सीमान्त कृशक एवं भूमिहीन मजदूर परियोजना एजेन्सी 1971
24. जनजातीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम 1972
25. जनजातीय विकास पायलट परियोजना 1972
26. पायलट गहन ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम 1972
27. न्यूनतम आवष्यक कार्यक्रम 1972
28. सूखा उन्मुख क्षेत्र कार्यक्रम 1973
29. कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम 1974
पंचम पंचवर्षीय योजना
30. समन्वित बाल विकास सेवा 1975
31. पर्वतीय क्षेत्र विकास एजेन्सी 1975
32. बीस सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम 1975
33. विषेश पषु समूह उत्पादन कार्यक्रम 1975
34. जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी 1976
35. कार्य हेतु अन्य येाजना 1977
36. मरुस्थल क्षेत्र विकास कार्यक्रम 1977
37. सम्पूर्ण ग्राम विकास योजना 1979
38. ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रषिक्षण कार्यक्रम 1979
षष्ठम पंचवर्षीय योजना
39. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम 1980
40. राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन कार्यक्रम 1980
41. ग्रामीण महिला एवं षिषु विकास कार्यक्रम 1983
42. ग्रामीण भूमिहीन नियोजन प्रतिभू कार्यक्रम 1983
43. इन्दिरा आवास योजना 1985
सप्तम पंचवर्षीय योजना
44. मातृत्व एवं षिषु स्वास्थ्य कार्यक्रम 1985
45. सार्वभौमिक टीकारण कार्यक्रम 1985
46. जवाहर नवोदय विद्यालय योजना 1986
47. नया बीस सूत्रीय कार्यक्रम 1986
48. केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण आरोग्य कार्यक्रम 1986
49. जन कार्यक्रम एवं ग्रामीण प्रोद्योगिकी उन्नयन परिशद्(कापार्ट) 1986
50. बंजर भूमि विकास परियोजना 1989
51. जवाहर रोजगार योजना 1989
अश्टम पंचवर्षीय योजना
52. षिषु संरक्षण एवं सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम 1992
53. प्रधानमंत्री रोजगार योजना 1993
54. नियोजन आष्वासन योजना 1993
55. राष्ट्रीय मानव संसाधन विकास कार्यक्रम 1994
56. परिवार साख योजना 1994
57. विनियोग प्रोत्साहन योजना 1994
58. समन्वित बंजर भूमि विकास परियोजना 1995
59. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम 1995
60. राष्ट्रीय वृद्ध पेंषन कार्यक्रम 1995
61. राष्ट्रीय परिवार लाभ कार्यक्रम 1995
62. राष्ट्रीय मातृत्व लाभ कार्यक्रम 1995
63. पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम 1995
64. मिलियन कुँआ कार्यक्रम 1996
65. विद्यालय स्वास्थ्य परीक्षण विषेश कार्यक्रम 1996
66. परिवार कल्याण कार्यक्रम 1996
नवम पंचवर्षीय येाजना
67. गंगा कल्याण योजना 1997
68. बालिका समृद्धि योजना 1997
69. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना 1999
70. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना 1999
71. ग्रामीण आवास हेतु ऋण एवं सहायता योजना 1999
72. ग्रामीण आवास विकास हेतु उन्मेशीय स्त्रोत येाजना 1999
73. समग्र आवास योजना 1999
74. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना 2000
दसवीं पंचवर्षीय योजना
75. ग्रामीण भण्डारण योजना 2002
76. सर्वशिक्षा अभियान 2002
77. सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना 2003
78. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना 2004
79. आषा योजना 2005
80. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम 2005
81. ज्ञान केन्द्र योजना 2005
82. महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम

ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का मूल्याँकन
भारत में ग्रामीण विकास के विविधप्रयासों की सफलता एवं असफलता की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण समाज एवं विशेषकर ग्रामीण निर्धनों पर ग्रामीण विकास कार्यक्रमेां की बहुत सीमित सफलता प्राप्त हुई है। ग्रामीण विकास की नीतियों, कार्यक्रमों के निर्धारण एवं क्रियान्वयन में कमियों के कारण ग्रामीण रुपान्तरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण परिणाम नहीं दृष्टिगोचर होता। कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के लक्ष्यों एवं उपलब्धियों के आधार पर उनका मूल्याँकन किया जा सकता है।

Sunday 2 November 2014

31 अक्तूबर का वो दिन.

31 अक्तूबर का वो दिन...
रेहान फ़ज़ल
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
1 नवंबर 2014
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भुवनेश्वर से इंदिरा गाँधी की कई यादें जुड़ी हुई हैं और इनमें से अधिकतर यादें सुखद नहीं हैं.
इसी शहर में उनके पिता जवाहरलाल नेहरू पहली बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे जिसकी वजह से मई 1964 में उनकी मौत हुई थी और इसी शहर में 1967 के चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गाँधी पर एक पत्थर फेंका गया था जिससे उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी.
सुने पूरी विवेचना
30 अक्तूबर 1984 की दोपहर इंदिरा गांधी ने जो चुनावी भाषण दिया, उसे हमेशा की तरह उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद ने तैयार किया था.
लेकिन अचानक उन्होंने तैयार आलेख से अलग होकर बोलना शुरू कर दिया. उनके बोलने का तेवर भी बदल गया.
रेहान फ़ज़ल की विवेचना

इंदिरा गांधी बोलीं, "मैं आज यहाँ हूँ. कल शायद यहाँ न रहूँ. मुझे चिंता नहीं मैं रहूँ या न रहूँ. मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है. मैं अपनी आख़िरी सांस तक ऐसा करती रहूँगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मज़बूत करने में लगेगा."
कभी-कभी नियति शब्दों में ढलकर आने वाले दिनों की तरफ़ इशारा करती है.
भाषण के बाद जब वो राजभवन लौटीं तो राज्यपाल बिशंभरनाथ पांडे ने कहा कि आपने हिंसक मौत का ज़िक्र कर मुझे हिला कर रख दिया.
इंदिरा गाँधी ने जवाब दिया कि वो ईमानदार और तथ्यपरक बात कह रही थीं.
रातभर सोईं नहीं

इंदिरा गांधी अपनी बहू सोनिया गांधी के साथ
उस रात इंदिरा जब दिल्ली वापस लौटीं तो काफ़ी थक गई थीं. उस रात वो बहुत कम सो पाईं.
सामने के कमरे में सो रहीं सोनिया गाँधी जब सुबह चार बजे अपनी दमे की दवाई लेने के लिए उठकर बाथरूम गईं तो इंदिरा उस समय जाग रही थीं.
सोनिया गांधी अपनी किताब 'राजीव' में लिखती हैं कि इंदिरा भी उनके पीछे-पीछे बाथरूम में आ गईं और दवा खोजने में उनकी मदद करने लगीं.
वो ये भी बोलीं कि अगर तुम्हारी तबीयत फिर बिगड़े तो मुझे आवाज़ दे देना. मैं जाग रही हूँ.
हल्का नाश्ता

पीटर उस्तीनोव इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे
सुबह साढ़े सात बजे तक इंदिरा गांधी तैयार हो चुकी थीं. उस दिन उन्होंने केसरिया रंग की साड़ी पहनी थी जिसका बॉर्डर काला था.
इस दिन उनका पहला अपॉएंटमेंट पीटर उस्तीनोव के साथ था जो इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे और एक दिन पहले उड़ीसा दौरे के दौरान भी उनको शूट कर रहे थे.
दोपहर में उन्हें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स कैलेघन और मिज़ोरम के एक नेता से मिलना था. शाम को वो ब्रिटेन की राजकुमारी ऐन को भोज देने वाली थीं.
उस दिन नाश्ते में उन्होंने दो टोस्ट, सीरियल्स, संतरे का ताज़ा जूस और अंडे लिए.
नाश्ते के बाद जब मेकअप-मेन उनके चेहरे पर पाउडर और ब्लशर लगा रहे थे तो उनके डॉक्टर केपी माथुर वहाँ पहुंच गए. वो रोज़ इसी समय उन्हें देखने पहुंचते थे.

इंदिरा गांधी अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ
उन्होंने डॉक्टर माथुर को भी अंदर बुला लिया और दोनों बातें करने लगे.
उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के ज़रूरत से ज़्यादा मेकअप करने और उनके 80 साल की उम्र में भी काले बाल होने के बारे में मज़ाक़ भी किया.
अचानक फ़ायरिंग

नौ बजकर 10 मिनट पर जब इंदिरा गांधी बाहर आईं तो ख़ुशनुमा धूप खिली हुई थी.
उन्हें धूप से बचाने के लिए सिपाही नारायण सिंह काला छाता लिए हुए उनके बग़ल में चल रहे थे. उनसे कुछ क़दम पीछे थे आरके धवन और उनके भी पीछे थे इंदिरा गाँधी के निजी सेवक नाथू राम.
सबसे पीछे थे उनके निजी सुरक्षा अधिकारी सब इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल. इस बीच एक कर्मचारी एक टी-सेट लेकर सामने से गुज़रा जिसमें उस्तीनोव को चाय सर्व की जानी थी. इंदिरा ने उसे बुलाकर कहा कि उस्तीनोव के लिए दूसरा टी-सेट निकाला जाए.
जब इंदिरा गांधी एक अकबर रोड को जोड़ने वाले विकेट गेट पर पहुंची तो वो धवन से बात कर रही थीं.
धवन उन्हें बता रहे थे कि उन्होंने उनके निर्देशानुसार यमन के दौरे पर गए राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह को संदेश भिजवा दिया है कि वो सात बजे तक दिल्ली लैंड कर जाएं ताकि उनको पालम हवाई अड्डे पर रिसीव करने के बाद इंदिरा ब्रिटेन की राजकुमारी एन को दिए जाने वाले भोज में शामिल हो सकें.
अचानक वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फ़ायर किया. गोली उनके पेट में लगी.
इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया लेकिन तभी बेअंत ने बिल्कुल प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और फ़ायर किए. ये गोलियाँ उनकी बग़ल, सीने और कमर में घुस गईं.
गोली चलाओ

तस्वीर में इंदिरा गांधी के पीछे नज़र आ रहे हैं कांग्रेस नेता आरके धवन.
वहाँ से पाँच फुट की दूरी पर सतवंत सिंह अपनी टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ खड़ा था.
इंदिरा गाँधी को गिरते हुए देख वो इतनी दहशत में आ गया कि अपनी जगह से हिला तक नहीं. तभी बेअंत ने उसे चिल्ला कर कहा गोली चलाओ.
सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमैटिक कारबाइन की सभी पच्चीस गोलियां इंदिरा गाँधी के शरीर के अंदर डाल दीं.
बेअंत सिंह का पहला फ़ायर हुए पच्चीस सेकेंड बीत चुके थे और वहाँ तैनात सुरक्षा बलों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी.
अभी सतवंत फ़ायर कर ही रहा था कि सबसे पहले सबसे पीछे चल रहे रामेश्वर दयाल ने आगे दौड़ना शुरू किया.
लेकिन वो इंदिरा गांधी तक पहुंच पाते कि सतवंत की चलाई गोलियाँ उनकी जांघ और पैर में लगीं और वो वहीं ढेर हो गए.
इंदिरा गांधी के सहायकों ने उनके क्षत-विक्षत शरीर को देखा और एक दूसरे को आदेश देने लगे. एक अकबर रोड से एक पुलिस अफ़सर दिनेश कुमार भट्ट ये देखने के लिए बाहर आए कि ये कैसा शोर मच रहा है.
एंबुलेंस नदारत

सरकारी माध्यमों ने इंदिरा गांधी की मौत की घोषणा कई घंटे बाद की थी.
उसी समय बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दोनों ने अपने हथियार नीचे डाल दिए. बेअंत सिंह ने कहा, "हमें जो कुछ करना था हमने कर दिया. अब तुम्हें जो कुछ करना हो तुम करो."
तभी नारायण सिंह ने आगे कूदकर बेअंत सिंह को ज़मीन पर पटक दिया. पास के गार्ड रूम से आईटीबीपी के जवान दौड़ते हुए आए और उन्होंने सतवंत सिंह को भी अपने घेरे में ले लिया.
हालांकि वहाँ हर समय एक एंबुलेंस खड़ी रहती थी. लेकिन उस दिन उसका ड्राइवर वहाँ से नदारद था. इतने में इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फ़ोतेदार ने चिल्लाकर कार निकालने के लिए कहा.
इंदिरा गाँधी को ज़मीन से आरके धवन और सुरक्षाकर्मी दिनेश भट्ट ने उठाकर सफ़ेद एंबेसडर कार की पिछली सीट पर रखा.
आगे की सीट पर धवन, फ़ोतेदार और ड्राइवर बैठे. जैसे ही कार चलने लगी सोनिया गांधी नंगे पांव, अपने ड्रेसिंग गाउन में मम्मी-मम्मी चिल्लाते हुए भागती हुई आईं.
इंदिरा गांधी की हालत देखकर वो उसी हाल में कार की पीछे की सीट पर बैठ गईं. उन्होंने ख़ून से लथपथ इंदिरा गांधी का सिर अपनी गोद में ले लिया.
कार बहुत तेज़ी से एम्स की तरफ़ बढ़ी. चार किलोमीटर के सफ़र के दौरान कोई भी कुछ नहीं बोला. सोनिया का गाउन इंदिरा के ख़ून से भीग चुका था.
स्ट्रेचर ग़ायब

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)
कार नौ बजकर 32 मिनट पर एम्स पहुंची. वहाँ इंदिरा के रक्त ग्रुप ओ आरएच निगेटिव का पर्याप्त स्टॉक था.
लेकिन एक सफ़दरजंग रोड से किसी ने भी एम्स को फ़ोन कर नहीं बताया था कि इंदिरा गांधी को गंभीर रूप से घायल अवस्था में वहाँ लाया जा रहा है.
एमरजेंसी वार्ड का गेट खोलने और इंदिरा को कार से उतारने में तीन मिनट लग गए. वहाँ पर एक स्ट्रेचर तक मौजूद नहीं था.
किसी तरह एक पहिए वाली स्ट्रेचर का इंतेज़ाम किया गया. जब उनको कार से उतारा गया तो इंदिरा को इस हालत में देख कर वहाँ तैनात डॉक्टर घबरा गए.
उन्होंने तुरंत फ़ोन कर एम्स के वरिष्ठ कार्डियॉलॉजिस्ट को इसकी सूचना दी. मिनटों में वहाँ डॉक्टर गुलेरिया, डॉक्टर एमएम कपूर और डॉक्टर एस बालाराम पहुंच गए.

अस्पताल के बाहर लोगों का हुजूम जमा हो चुका था जो बहुत गुस्से में था
एलेक्ट्रोकार्डियाग्राम में इंदिरा के दिल की मामूली गतिविधि दिखाई दे रही थीं लेकिन नाड़ी में कोई धड़कन नहीं मिल रही थी.
उनकी आँखों की पुतलियां फैली हुई थीं, जो संकेत था कि उनके दिमाग़ को क्षति पहुंची है.
एक डॉक्टर ने उनके मुंह के ज़रिए उनकी साँस की नली में एक ट्यूब घुसाई ताकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच सके और दिमाग़ को ज़िंदा रखा जा सके.
इंदिरा को 80 बोतल ख़ून चढ़ाया गया जो उनके शरीर की सामान्य ख़ून मात्रा का पांच गुना था.
डॉक्टर गुलेरिया बताते हैं, "मुझे तो देखते ही लग गया था कि वो इस दुनिया से जा चुकी हैं. उसके बाद हमने इसकी पुष्टि के लिए ईसीजी किया. फिर मैंने वहाँ मौजूद स्वास्थ्य मंत्री शंकरानंद से पूछा कि अब क्या करना है? क्या हम उन्हें मृत घोषित कर दें? उन्होंने कहा नहीं. फिर हम उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले गए."
सिर्फ़ दिल सलामत

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़के थे
डॉक्टरों ने उनके शरीर को हार्ट एंड लंग मशीन से जोड़ दिया जो उनके रक्त को साफ़ करने का काम करने लगी और जिसकी वजह से उनके रक्त का तापमान सामान्य 37 डिग्री से घट कर 31 डिग्री हो गया.
ये साफ़ था कि इंदिरा इस दुनिया से जा चुकीं थी लेकिन तब भी उन्हें एम्स की आठवीं मंज़िल स्थित ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया.
डॉक्टरों ने देखा कि गोलियों ने उनके लीवर के दाहिने हिस्से को छलनी कर दिया था, उनकी बड़ी आंत में कम से कम बारह छेद हो गए थे और छोटी आंत को भी काफ़ी क्षति पहुंची थी.
उनके एक फेफड़े में भी गोली लगी थी और रीढ़ की हड्डी भी गोलियों के असर से टूट गई थी. सिर्फ़ उनका हृदय सही सलामत था.
योजना बनाकर साथ ड्यूटी

इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार में नज़र आ रहे हैं सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राजीव गांधी.
अपने अंगरक्षकों द्वारा गोली मारे जाने के लगभग चार घंटे बाद दो बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया.
लेकिन सरकारी प्रचार माध्यमों ने इसकी घोषणा शाम छह बजे तक नहीं की.
इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाले इंदर मल्होत्रा बताते हैं कि ख़ुफ़िया एजेंसियों ने आशंका प्रकट की थी कि इंदिरा गाँधी पर इस तरह का हमला हो सकता है.
उन्होंने सिफ़ारिश की थी कि सभी सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके निवास स्थान से हटा लिया जाए.

इंदिरा गांधी पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के साथ वर्ष 1972 में शिमला समझौते के दौरान
लेकिन जब ये फ़ाइल इंदिरा के पास पहुंची तो उन्होंने बहुत ग़ुस्से में उस पर तीन शब्द लिखे,"आरंट वी सेकुलर? (क्या हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं?)"
उसके बाद ये तय किया गया कि एक साथ दो सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके नज़दीक ड्यूटी पर नहीं लगाया जाएगा.
31 अक्तूबर के दिन सतवंत सिंह ने बहाना किया कि उनका पेट ख़राब है. इसलिए उसे शौचालय के नज़दीक तैनात किया जाए.
इस तरह बेअंत और सतवंत एक साथ तैनात हुए और उन्होंने इंदिरा गाँधी से ऑपरेशन ब्लूस्टार का बदला ले लिया

Wednesday 17 September 2014

बहुत लोकप्रिय बेहद प्रभावशाली सिद्धान्त

बेहद प्रभावशाली सिद्धान्त


1-  जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं।
2-  किसी के जीवन में उजाला लाओ।
3-  दूसरों का आर्शिवाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो इनके बिना जीवन अर्थहीन है।
4-  देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुणं है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिये उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिये।
5-  कम से कम दो गरीब बच्चों को आत्मर्निभर बनाने के लिये उनकी शिक्षा में मदद करो।
6-  सरलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एक मात्र रास्ता है।
7-  प्रकृति से सिखो जहाँ सब कुछ छिपा है।
8-  हमें मुस्कराहट का परिधान जरूर पहनना चाहिये तथा उसे सुरक्षित रखने के लिये हमारी आत्मा को गुणों का परिधान पहनाना चाहिये।
9-  समय, धैर्य तथा प्रकृति, सभी प्रकार की पिङाओं को दूर करने और सभी प्रकार के जख्मो को भरने वाले बेहतर चिकित्सक हैं।
10- अपने जीवन में उच्चतम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य रखो और उसे प्राप्त करो।
11- प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो।